by।शिवचरण सिन्हा

दुर्गुकोंदल।भारत वर्ष पर्वों का देश है यहां ऋषियों ने औऱ ऋषि परम्पराओ के मानने वालों ने राष्ट्रप्रेम के जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाये है,उन्हीं में एक गणेश चतुर्थी के त्योहार का विशेष महत्व होता है। ये त्योहार भगवान गणेश को समर्पित होता है। इस साल गणेशोत्सव का त्योहार 31 अगस्त, बुधवार से शुरू है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का त्योहार बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है।दुर्गुकोंदल अंचल में गणेश मूर्ति स्थापना की धूम रही,युवाओ का दल हो या महिलाओं का घर पर स्थापित करने व सार्वजनिक पंडाल पर स्थापित करने सुबह से सजावट व बाजे गाजे के साथ मूर्ति लाकर विधि विधान से स्थापना की गई।अब 10 दिनों तक गणपति बप्पा का पूजन चलता रहेगा। जिसकी पूरे देश में खूब धूम रहती है। माना जाता है कि गणपति की पूजा से हर तरह के विघ्न दूर हो जाते हैं। चतुर्थी तिथि पर गणेश प्रतिमा की स्थापना के साथ 10 दिनों तक गणेशोत्सव का पर्व मनाया जाता है।फिर अनंत चतुर्दशी के दिन प्रतिमा का विसर्जन करते हुए गणेशोत्सव पर्व संपन्न होता है।
पौराणिक मान्यता अनुसार माता पार्वती के पुत्र गणेश का जन्म भाद्र मास के चतुर्थी तिथि को हुआ था।एक पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना के लिए गणेश जी का आह्वान किया था और उनसे महाभारत को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की. माना जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन ही व्यास जी ने श्लोक बोलना और गणपति जी ने महाभारत को लिपिबद्ध करना शुरू किया था। बिना रुके गणेश जी 10 दिन तक लेखन कार्य करते रहे. इन 10 दिनों में गणेश जी पर धूल मिट्टी की परत चढ़ गई। खुद को स्वच्छ करने के लिए 10वें दिन गणपति जी ने सरस्वती नदी में स्नान किया। इस दिन अनंत चतुर्दशी थी। इस कथा के आधार पर ही गणेश स्थापना और विसर्जन की परंपरा है।शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र गणेश का जन्म जिस दिन हुआ था। उस दिन भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी थी। इसलिए, इस दिन को गणेश चतुर्थी और विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है।भगवान गणेश के पूजन से घर में सुख समृद्धि और वृद्धि आती है। इसके साथ ही बप्पा भक्तों के सभी कष्टों को हर लेते हैं।