दुर्घटना से दिव्यांग बने जगेश्वर आज जहां नापने को हैं तैयार….

जशपुरनगर। कहते हैं उम्मीद पर दुनिया कायम हैं। निराश होने के बाद उम्मीद की किरण जीवन को प्रकाशमय करतीं हैं ।पैसे की आर्थिक तंगी की वजह से कई लोगों का ईलाज नही हो पाता हैं सरकारी तंत्र सुविधा के अभाव में हाथ खड़े करते हैं, जिससे जीवन में निराशा आ जाती हैं। ऐसा मनोरा ब्लाक निवासी जगेश्वर राम महतो उम्र (44) के साथ भी हुआ, पर उसने उम्मीद नही छोड़ा,जो उसकी जीत की वजह बना। वह नवम्बर 2022 में सड़क हादसे का शिकार हो गए। ईलाज के दौरान उसे अपना दायां पैर गवाना पड़ा। मेडिकल बोर्ड ने उसे 80% दिव्यांगता घोषित किया। जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहें जगेश्वर की जान किसी तरह बच गई पर आगे जिंदगी में काफी तकलीफें थीं। खुद गरीब परिवार से तालुकात रखने के कारण न तो उसके पास कोई जमा पूंजी थीं और न कोई साथ देने वाला । दिव्यांगता के कारण बैसाखी के बगैर एक कदम बढ़ना मुश्किल था। जगेश्वर को पूरी तरह स्वस्थ होने के लिए बेहतर ईलाज की जरूरत थीं। कृत्रिम पैर लगाने के लिए पैसे कहा से आये। जब कमाने वाला बैसाखी पर हो।उसने बीमारी से निजात पाने के लिए कई जगह गुहार लगाई पर मायूसी के सिवा कुछ नही मिला। वह बहुत दुखी हुआ। इसी हाल में महीनें बीत गए। जगेश्वर ने बताया पैसों की खुदाई के आगे मैं कमजोर पड़ा पर जंग नही हारी । मुझे खुद पर भरोसा था एक दिन मैं जरूर ठीक होऊंगा।

यूट्यूब में सर्च कर पते पर पहुंचें

गाजियाबाद में सौरभ सागर सेवा संस्थान (आशा दीप हॉस्पिटल एवं पुनर्वास केन्द्र ) में मुक्त दिव्यांगों का कृत्रिम अंग लगाने से लेकर ईलाज निशुल्क होता है। जगेशवर ने यूट्यूब में सर्च कर फोन पर बात की फिर ईलाज के लिए गाजियाबाद( उत्तरप्रदेश)पहुंचे । डॉक्टरों ने स्थिति देखते हुए एक हप्ते अस्पताल में एडमिट किया ।जहां वरिष्ठ एवं अनुभवी डॉक्टरों की देख रेख में वैज्ञानिक पद्धति से कृत्रिम अंग लगाकर नया जीवन दिया। आज जगेश्वर जहां नापने को तैयार हैं। उसने बताया मेरे पास ईलाज के लिए पैसे नही थे। सौरभ सागर सेवा संस्थान (आशा दीप हॉस्पिटल एवं पुनर्वास केन्द्र ) मुराद नगर ,गंग नहर से आगे गाजियाबाद (उत्तरप्रदेश) में मेरा निशुल्क ईलाज हुआ। कृत्रिम अंग लगने के बाद अब मैं चल फिर रहा हुं। मुझे किसी तरह की कोई दिक्कत नही । मेरी तरफ से सौरभ सागर सेवा संस्थान (आशा दीप हॉस्पिटल एवं पुनर्वास केन्द्र ) के डॉक्टरों एवं सहयोगीयों का ह्रदय से आभार जिनकी बदौलत मैं ठीक हुआ।