मुंडा समाज के एक ही परिवार के दर्जनों पूर्वजों के नाम पत्थरगढ़ी

जशपुर नगर। जनजाति समाज में पत्थलगड़ी ,पुरखा पूजने की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रहीं है। जिसका दस्तूर आज भी हैं। जो गुजरे हुए पूर्वजों एवं स्वजनों की याद दिला रहा। जनजाति समाज में जिनकी अच्छी मृत्यु होती हैं उनकी स्मृति चिन्ह के तौर पर पत्थलगड़ी की जाती हैं। शहर के भागलपुर चोंगो बस्ती में बीटीआई के पीछे मुंडा समाज के एक ही परिवार द्वारा पूर्वजों एवं अपनों की स्मृति में पथरगढ़ी की गई है । इनमें से कई लगभग हजार साल के पथरगढ़ी आज भी मौजूद है। जिसे देखने के लिए सामाजिक लोग पहुचतें है। दरअसल चोंगो बस्ती में मुंडा समाज के सैकड़ो लोग निवास करते हैं। जिनका मुख्य काम चटाई बुनाई ,खेती के अलावा अन्य हैं। यह काफी पुराने समय से बसे हैं। राजू बताते हैं वह अपनी पीढ़ी की तीसरी संतान है। उन्होंने पिछले वर्ष अपने भाई की अच्छी मृत्यु होने पर पथरगढ़ी की है। जिस जगह पर पत्थरगढ़ी की गई हैं उस जगह को संरक्षित किया गया हैं।
लगभग 1000 साल पुराना पत्थरगढ़ी भागलपुर के चोंगो बस्ती में मौजूद
पत्थरगढ़ी पूर्वजों एवं स्वजनों की स्मृति में
अशोक ने बताया कि पूर्वजों ने समाज को दिशा निर्देश दिया हैं। हम भी उनके बताएं मार्ग पर चले रहें। पत्थरगढ़ी अपनी पूर्वजों एवं स्वजनों की याद में होते है। जिससे की मौजूद लोग अपने गुजरे हुए नाती पोती ,दादा ,परदादा को बता सकते हैं। उन्होंने बताया कि मुंडा समाज के लोग बगीचा , टिकतगंज, बालाछापर, कुनकुरी,कांसाबेल, लैलूंगा,बछराव, अंबिकापुर, पुरना नगर समेत झारखंड में भारी तादात में निवास करते है। जनजाति समाज अपने परंपरा संस्कृति के लिए जाना जाता हैं। परिजनों की स्मृति के नाम से पत्थर को गढ़ा जाता है उसे पत्थरगड़ी कहते हैं। पत्थर गढ़ने के दौरान उसमें आदमी के चिन्ह रेखा के साथ उनके जन्म मृत्यु का लेखा-जोखा और माता-पिता का नाम उकेरा जाता है जिससे कि आने वाली पीढ़ी उनके बारे में जान सके। पत्थरगढ़ी सामाजिक दायरे में होता जिस स्थान पर पत्थरगढ़ी की जाती है उस जगह को सुरक्षित रखा जाता है।
पत्थरगढ़ी की साल में तीन बार होती हैं पूजा
जनजाति समाज पत्थरगढ़ी की पूजा विधिविधान से साल में तीन बार दीपावली ,दशहरे ,होली में करते है। पूजा के दौरान पत्थरगढ़ी को पानी से नहलाया जाता है। उस स्थान की शुद्धता के लिए गोबर से लीपा जाता है। पुर्वजो को देशी शराब अर्थात तपान एवं नए चावल का भोग लगाया जाता है साथ ही मुर्गा भी दिया जाता है। पूजन के बाद समाज के लोगों को प्रसाद के तौर पर भोजन करते हैं।