राजिम ।हिंदी और उर्दू में सामाजिक सराकारों के ज्वलंत मुद्दे, छूआछुत, जाति भेद, वर्ग भेद, एवम दलित शोषित किसानों के दर्द पर लगातार कलम चलाने वाले कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी सामाजिक जागरण के सशक्त हस्ताक्षर थे, जिनकी साहित्यिक योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है।उक्त बातें मुंशी प्रेमचन्द जी की जयंती पर आयोजित विचार एवम काव्य गोष्ठी में मुख्य अतिथि के आसंदी से बोलते हुए वरिष्ठ साहित्यकार मकसुदन साहू बरिवाला ने कही, गायत्री मंदिर सभागार राजिम में आयोजित इस कार्यक्रम का शुभारम्भ मुंशी प्रेमचन्द को साहित्यिक श्रद्धांजलि प्रदान करने के साथ हुआ। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए समिति के संरक्षक मोहनलाल मानिकपन, “भावुक ” ने कहा कि प्रेमचन्द जी ने 1906 से1936 तक लगभग तीन दशक तक साहित्य के माध्यम से जो समाज सेवा किया वह अभुतपूर्व है, अजीम प्रेम जी फाउंडेशन इकाई से पहुँचे फैज जी ने कहा कि, स्वतंत्रता संग्राम के भीषण दौर में राष्ट्रिय एकता से परिपूर्ण देशप्रेम से ओतप्रोत राष्ट्रिय पत्रिका का संपादन अपने आप में बहुत बड़ी साहस को दर्शाता है| समिति के सह सचिव रोहित साहू माधुर्य ने कहा कि, मुंशी प्रेमचन्द की रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं, चाहे वह गोदान, रंगभूमि, कफन, सेवा सदन हो या ठाकुर का कुंआ, ईदगाह, ये सभी आज भी हमारा पथ प्रदर्शक के रूप में स्थापित है|इस अवसर पर गजलकार रामेश्वर रंगीला ने हिंदी एवम उर्दू की बेमिसाल गज़लें सुनाकर प्रेमचन्द जी को सच्ची श्रद्धाजंलि दी,तो कवि भारत लाल साहू, “प्रभु” ने लोक जागरण पर कालजयी रचना प्रस्तुति देकर माहौल को ऊँचाई प्रदान किया। विचार संगोष्ठी के इस दौर में अजीम प्रेमचन्द फाउंडेशन की ओर से अंकिता , खुलेश्वर् , मालविका , एवम उपस्थित साहित्यकारों ने अपने अपने उद्गार व्यक्त किए।कार्यक्रम का संचालन कर रहे साहित्यकार श्रवण कुमार साहू, “प्रखर” ने कहा कि प्रेमचन्द जी आज के रचनाकारों के लिए आदर्श हो सकते हैं।आज समाज में जिस तरह से स्तरहीन साहित्य कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे हैं, उस पर लगाम लगाना जरूरी है, आज साहित्यकारों को मुंशी प्रेमचन्द जी के साहित्य भंडार से सीख लेने की जरूरत है|आभार प्रदर्शन रामेश्वर रंगीला ने किया|