रायपुर, 5 अक्टूबर 2025।छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर प्रदेश की राजनीति की नब्ज़ मानी जाती है। यहाँ से जो राजनीतिक संदेश जाता है, उसका असर पूरे राज्य में पड़ता है। मगर अब तक कांग्रेस ने रायपुर को एक भी महिला शहर अध्यक्ष नहीं दी है, जबकि पार्टी ने 2023 में अपने संविधान में महिलाओं और युवाओं को 50-50% भागीदारी का वादा किया था। प्रियंका गांधी के नारे “लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ” के बावजूद रायपुर में महिला नेतृत्व को मौका न मिलना पार्टी की नीति और हकीकत के बीच की दूरी को दिखाता है।
राजधानी में महिलाएं वर्षों से बूथ, ब्लॉक और वार्ड स्तर पर सक्रिय हैं। धरना-प्रदर्शन, जनसंपर्क या चुनाव प्रचार—हर मोर्चे पर उनकी भूमिका अहम रही है। इसके बावजूद निर्णय की कुर्सी पर हमेशा पुरुष ही बैठे। यह स्थिति कांग्रेस की विचारधारा के विपरीत है और आधी आबादी की उपेक्षा दर्शाती है।
दूसरी ओर भाजपा ने ‘महतारी वंदन योजना’ जैसी योजनाओं से महिलाओं तक सीधा जुड़ाव बनाया है। कांग्रेस को यदि महिला मतदाताओं और कार्यकर्ताओं का विश्वास फिर से जीतना है, तो उसे केवल नारों से आगे बढ़कर नेतृत्व में महिलाओं की वास्तविक भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।
अब रायपुर की महिला कांग्रेस कार्यकर्ता और पार्षद एक सुर में मांग कर रही हैं — “इस बार किसी सक्रिय और जनाधार वाली महिला को शहर अध्यक्ष बनाया जाए।” यह कदम न केवल कांग्रेस की घोषित नीतियों के अनुरूप होगा, बल्कि संगठन में नई ऊर्जा और संतुलन भी लाएगा।
क्योंकि जब महिला नेतृत्व आगे बढ़ेगा, तभी कांग्रेस फिर से मज़बूती से उभरेगी।

