जीवन का आधार श्रद्धा और विश्वास, मन का स्वभाव चंचल : डीआईजी डी रविशंकर

जशपुरनगर ।चेतना विकास मूल्य शिक्षा पांच दिवसीय प्रशिक्षण के अंतिम दिन समापन मे डीआईजी एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डी रविशंकर जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान जशपुर मे बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए.उन्होंने इस प्रशिक्षण मे डाईट के डी एल एड के छात्राध्यापकों ने व्याख्यान दिया. इस अवसर पर सर्वप्रथम विद्यादायिनी माँ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर दीप प्रज्वललित किया गया एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का संस्था की ओर से स्वागत किया गया.

डीआईजी एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डी रविशंकर जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के प्रशिक्षर्थियों को विषय के संबंध मे व्याख्यान दिया उन्होंने कहा कि जीवन का आधार श्रद्धा और विश्वास है। जीवन जानने और समझने का विषय है. उन्होंने कहा कि चेतना और मन में अंतर है इस पर विस्तारपूर्वक बताया कि किसका अस्तित्व स्थाई है और उसके सापेक्ष क्या क्या बदलता है, मन कुण्डलियों के सहारे चलती है, बुद्धि में समझ होती हैं। चेतना बहुत बड़ा शब्द है। चेतना शब्द बहुत विशाल है इस पर पी.एच.डी किया जा सकता है, यह सामान्य विषय नहीं है, चेतना हमेशा स्थाई एवं जागृत रूप मे रहती है हमें अपनी विभिन्न माध्यमो से जागृत रखना है, मन का स्वभाव ही चंचल है जबकि चेतना सारी गतिविधियों को देखते रहती है, लेकिन हमें तुरंत ही अवगत नहीं कराती है उन्होंने बताया कि चेतना के चार भाग है और चारों भाग अपने समय पर अपना अपना-अपना काम करते हैं। उन्होंने छात्र छात्राओं से पूछा कि आप जीवन के बारे जानते हैँ या मानते है, ईश्वर को जानते है या मानते है, जैसे प्रश्न पूछ कर चेतना को परिभाषित किया फिर उन्होंने कहा कि जीवन को जानने, जाँच करने एवं समझने की आवश्यकता है।

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के व्दारा आज बच्चों से ढेरों बातें एवं प्रशिक्षण मे विषय के संबंध में विचार साझा किये और उन्होंने उन सभी बच्चों की प्रशंसा की उनके क्षमता विकास के समझ उन्होंने कहा कि यह प्रशिक्षण हर व्यक्ति के लिए आयोजित होना चाहिए जिससे लोग खुशहाल हो सकें.
प्रशिक्षण प्रभारी आर. बी. चौहान ने भी सम्बोधित करते हुए कहा कि दुध, दही, छाछ, मक्खन ,घी सब एक ही वंश के हैं. फिर भी सबकी कीमत अलग है, क्योंकि श्रेष्ठता जन्म से नहीं बल्कि अपने कर्म, कला और गुणों से प्राप्त होती है।मानव का असली मुकाबला केवल खूद से है, अगर आज आप खुद को कल से बेहतर बनाते हो तो यह आपकी बड़ी जीत है। जीवन को मानना नही जानना है इस पर जाँचना और सर्वे करना है, सोच समझकर जीवन में फैसला लेना है तभी जीवन की सार्थकता है।उन्होंने कहा कि चेतना विकास जीव चेतना से मानव चेतना में संक्रमण ही चेतना विकास है । इसका विकास न्यून मूल्य से अधिक मूल्य की ओर परिणाम ही विकास है। गुणात्मक परिणाम ही विकास है। चारों अवस्था में संतुलनकारी सामंजस्य एवं समन्वयपूर्वक गुणात्मक परिवर्तन ही विकास है.

प्रशिक्षण के प्रशिक्षक के रूप में आशुतोष नीरज, उतम कुमार यादव एवं मनोजकुमार पाण्डेय ने भी अपना विचार साझा किया। छात्राध्यापकों मे कु. दिव्या पाठक, गोपाल भगत,हीरालाल रितिका भगत एवं अन्य बहुत सारे छात्राध्यापकों ने अपना विचार एवं अनुभव साझा किए, कार्यक्रम में छात्राध्यापकों की रुचि एवं उत्साह देखा गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top