रायपुर सेंट्रल जेल बनी विवादों का गढ़, नशे और वसूली के नेटवर्क का पर्दाफाश – वीडियो ने हिला दी पूरी व्यवस्था
रायपुर। अक्टूबर 16, 2025 . रायपुर सेंट्रल जेल एक बार फिर कठघरे में है। जेल की बैरक नंबर-15 से सामने आए ताज़ा वीडियो ने सुरक्षा और निगरानी व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर किया है। वीडियो में मोह. राशिद अली उर्फ़ राजा बैज़ड़, जो एनडीपीएस एक्ट की धारा 20(बी) के तहत गिरफ्तार होकर 11 जुलाई 2025 से जेल में बंद है, को मोबाइल फोन का खुलेआम उपयोग करते हुए देखा जा सकता है।
उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार, यह वीडियो 13 से 15 अक्टूबर 2025 के बीच शूट किया गया था।
इस पूरे मामले को सार्वजनिक करने का श्रेय छत्तीसगढ़ प्रदेश के राजधानी रायपुर से ख्यातिप्राप्त खोजी पत्रकार मुकेश एस. सिंह को जाता है, जिन्होंने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल @truth_finder04 के माध्यम से यह वीडियो और उससे जुड़े प्रमाण साझा किए।
उन्होंने ट्वीट में यह दावा किया कि यह वीडियो जेल के भीतर से ही शूट किया गया है और इसमें आरोपी राजा बैज़ड़ द्वारा मोबाइल का इस्तेमाल साफ दिखाई देता है।
उनके इस खुलासे के बाद पूरे राज्य में सनसनी फैल गई और जेल प्रशासन के खिलाफ जवाबदेही की मांग तेज हो गई।
दो थानों में 9 प्रकरण: दस्तावेज़ानुसार आपराधिक ब्योरा
आधिकारिक अभिलेख (अपराधिक रिकॉर्ड) के अनुसार, टिकरापारा और कोतवाली थानों में कुल 9 आपराधिक मामले दर्ज हैं। ये सभी प्रकरण अलग-अलग वर्षों में दर्ज हुए और विभिन्न गंभीर धाराओं से संबंधित हैं। नीचे दस्तावेज़ में अंकित अपराध क्रमांक व धाराओं का विवरण क्रमवार प्रस्तुत है:
A. थाना टिकरापारा, रायपुर
1) अपराध क्रमांक 632/2014 – धारा 25, आर्म्स एक्ट
यह प्रारंभिक मामला आरोपी के विरुद्ध दर्ज पहला हथियार संबंधी प्रकरण है।
2) अपराध क्रमांक 136/2015 – धारा 25, आर्म्स एक्ट
दूसरा मामला भी आर्म्स एक्ट की ही धारा से संबंधित है।
3) अपराध क्रमांक 351/2017 – धारा 25, 27, आर्म्स एक्ट
तीसरे मामले में आर्म्स एक्ट की दोनों धाराएँ अंकित हैं।
4) अपराध क्रमांक 250/2017 (थाना कोतवाली) – धारा 302, 201, 34, भा.दं.सं.
यह हत्या और साक्ष्य नष्ट करने से संबंधित गंभीर प्रकरण है।
5) अपराध क्रमांक 756/2024 – धारा 262, भा.दं.सं.
इस प्रविष्टि में भारतीय दंड संहिता की धारा 262 अंकित है।
6) अपराध क्रमांक 864/2024 – धारा 25, 27, आर्म्स एक्ट
आर्म्स एक्ट के अंतर्गत यह एक और मामला है।
7) अपराध क्रमांक 507/2025 – धारा 296, 351(2), 115(2), भा.दं.सं.
यह प्रविष्टि दस्तावेज़ में इसी रूप में दर्ज है।
8) अपराध क्रमांक 517/2025 – धारा 20(बी), एनडीपीएस एक्ट
यही वह मामला है जिसके कारण आरोपी 11 जुलाई 2025 से न्यायिक अभिरक्षा में है।
9) अपराध क्रमांक 411/442/2025 – धारा 170, 126, 135(3), भा.दं.सं.
यह प्रविष्टि “इस्त० 411/442/25” के रूप में दस्तावेज़ में अंकित है।
नोट: उपरोक्त सभी प्रविष्टियाँ आधिकारिक अभिलेख के अनुसार उद्धृत की गई हैं। उद्देश्य केवल दस्तावेज़ीय जानकारी प्रस्तुत करना है, न कि किसी प्रकरण की व्याख्या।
बैरक नंबर-15: अंदरूनी गतिविधियों का केंद्र
खुलासे के अनुसार, राजा बैज़ड़ बैरक नंबर-15 में बंद था – जहाँ से उसने कथित रूप से मोबाइल फोन के ज़रिए संपर्क, वसूली और नशे के नेटवर्क को नियंत्रित किया।
वीडियो में स्पष्ट दिखाई देता है कि वह पहले अपने रिश्तेदार से वीडियो कॉल पर बात करता है और उसके बाद उसी कॉल के दौरान खुद का वीडियो शूट कर भेजता है, मानो जेल परिसर में उसी का नियंत्रण चल रहा हो।
स्रोतों का कहना है कि बैरक नंबर-15 जेल का वह हिस्सा है जहाँ कुछ बंदियों को सामान्य से अधिक सुविधाएँ मिलती रही हैं।
इसी बैरक में रहकर उसने अंदरूनी प्रभाव और बाहरी नेटवर्क दोनों को सक्रिय रखा, जो अब वायरल वीडियो के रूप में सामने आया है।
वीडियो की तिथि 13 से 15 अक्टूबर 2025 के बीच की बताई गई है, जिससे यह पुष्टि होती है कि यह गतिविधि जेल के भीतर से हुई थी
खोजी पत्रकार मुकेश एस. सिंह का बयान
खोजी पत्रकार मुकेश एस. सिंह, जिन्होंने यह मामला उजागर किया, ने कहा –
“यह सिर्फ़ एक अपराधी की कहानी नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की सच्चाई है।
हर बार जब ऐसे खुलासे होते हैं, तो कुछ निचले स्तर के कर्मचारी निलंबित कर दिए जाते हैं,
लेकिन असली जिम्मेदार अधिकारी बेदाग़ बच निकलते हैं।
यह वीडियो इस सड़न की गवाही है जिसे अब अनदेखा नहीं किया जा सकता।”
उन्होंने यह भी कहा कि वीडियो में दिख रही परिस्थितियाँ बताती हैं कि जेल की दीवारों के भीतर नियंत्रण तंत्र नाममात्र का रह गया है।
उनके अनुसार, यह प्रकरण इस बात का प्रमाण है कि संस्थागत सुधार व्यवस्था अब केवल कागज़ों पर सीमित रह गई है।
संस्थागत जवाबदेही की आवश्यकता
रायपुर सेंट्रल जेल का यह प्रकरण इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि निगरानी और जवाबदेही का ढाँचा कमजोर हो चुका है।
जेल के भीतर मोबाइल, नशे के पदार्थ और अवैध गतिविधियाँ केवल सुरक्षा चूक नहीं, बल्कि संस्थागत निगरानी की असफलता का परिणाम हैं।
यह भी स्पष्ट है कि जब तक कमान और जवाबदेही की श्रृंखला को स्पष्ट नहीं किया जाएगा, तब तक ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति होती रहेगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि जेलों को पुनर्वास और सुधार के केंद्र के रूप में पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता है।
कठोर निगरानी प्रणाली, डिजिटल ट्रैकिंग, और उच्चस्तरीय तकनीकी अवरोधों के बिना सुरक्षा मानकों की पुनर्स्थापना संभव नहीं।
वीडियो के विस्फोटक खुलासे ने यह दिखा दिया है कि रायपुर सेंट्रल जेल अब सुधार गृह नहीं, बल्कि ऑर्गेनाइज्ड क्राइम का संचालन केंद्र बन चुकी है जहाँ से आरोपी अपने नेटवर्क को नियंत्रित करने में सक्षम हैं।
यह केवल एक अपराधी का मामला नहीं, बल्कि संस्थागत सुधार तंत्र के पतन की चेतावनी है।
अगर सुधारात्मक कार्रवाई शीर्ष स्तर तक नहीं पहुँची, तो जेल की दीवारों के भीतर अपराध का यह नेटवर्क और गहराई तक जड़ें जमा लेगा।
कौन है Moh. Rashid Ali उर्फ़ Raja Baizad?
The man whose video from Barrack No-15 shook Chhattisgarh has been under scanner since 2014-his record screams habitual crime, habitual impunity.
From his jail cell to the jail bathroom, he uses his mobile phone at will – clicking selfies, shooting videos, and sharing them with fellow inmates as if Raipur Central Jail were his personal studio, not a prison.
अपने सेल से लेकर जेल के बाथरूम तक, वह मर्ज़ी से मोबाइल चलाता है, वीडियो बनाता है, सेल्फी लेता है, और बंदियों के साथ साझा करता है – मानो रायपुर सेंट्रल जेल सज़ा का नहीं, उसकी सत्ता का अड्डा हो।

