पोला त्योहार की रही धूम,किसानों ने पशुओं की पूजा आराधना

by।शिवचरण सिन्हा

दुर्गुकोंदल:भारत देश कृषिप्रधान देश है,यहाँ कृषि को अच्छा बनाने में मवेशियों का विशेष योगदान होता है यही कारण है कि भारत देश के विभिन्न प्रान्तों में खासकर छत्तीसगढ़ में इन मवेशियों की पूजा की जाती है। पोला का त्यौहार उन्ही में से एक है, जिस दिन कृषक गाय, बैलों की पूजा करते है।पोला का त्यौहार भादों माह की अमावस्या को जिसे पिठोरी अमावस्या भी कहते है को मनाया जाता है इस वर्ष यह 27 अगस्त को दुर्गुकोंदल क्षेत्र जहां कृषि आय का मुख्य स्रोत है और ज्यादातर किसानों की खेती के लिए बैलों का प्रयोग किया जाता है इन क्षेत्र में किसान पशुओं की पूजा आराधना एवं उनको धन्यवाद देने के लिए इस त्योहार की धूम रही।
विदित हो कि इस सावन माह में खेती-किसान‍ी काम समाप्त होने के बाद इसी दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती है यानी धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है इसीलिए यह त्योहार मनाया जाता है।इस दिन घोड़े, बैल के साथ साथ चक्की (हाथ से चलाने वाली चक्की) की भी पूजा की जाती है. पहले के ज़माने में घोड़े बैल, जीवनी को चलाने के लिए मुख्य होते थे, एवं चक्की के द्वारा ही घर पर गेहूं पीसा जाता था।साथ ही तरह तरह के पकवान इनको चढ़ाये जाते है जिसमे सेव, गुझिया, मीठे खुरमे आदि घर -घर बनाये जाते है।इसके अलावा ग्रामीण अंचल में गेड़ी का जुलुस निकाला गया।गेड़ी, बांस से बनाया जाता है, जिसमें एक लम्बा बांस में नीचे 1-2 फीट उपर आड़ा करके छोटा बांस लगाया जाता है।फिर इस पर बैलेंस करके, खड़े होकर चला जाता है। गेड़ी कई साइज़ की बनती है, जिसमें बच्चे, बड़े सभी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता है। ये एक तरह का खेल है, जो छत्तीसगढ़ का पारंपरिक खेल है।

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