“रश्मिरथी की रश्मियों से दमक उठा जशरंग महोत्सव का मंच” सुप्रसिद्ध नाट्य कलाकार हरीश हरिऔध ने एकल प्रस्तुति पर बांधा समां

जशपरनगर।। प्रथम जशरंग राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव के चौथे दिन मंचित हुई राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित खंडकाव्य “रश्मिरथी” की प्रस्तुति दर्शकों के हृदय को छू गई। यह अद्वितीय नाट्य मंचन “सुरभि”, बेगूसराय, बिहार द्वारा प्रस्तुत किया गया, जिसकी परिकल्पना, निर्देशन और एकल अभिनय का त्रिगुणात्मक भार बख़ूबी निभाया हरीश हरिऔध ने। करीब 300 दर्शकों की उपस्थिति में यह डेढ़ घंटे की प्रस्तुति महाभारत के महापात्र कर्ण के जीवन, संघर्ष, और चेतनाओं की एक मार्मिक गाथा बनकर उभरी। हरीश हरिऔध ने एकल अभिनय की सीमाओं को पार कर कर्ण के अंतर्द्वंद, गर्व, पीड़ा और साहस को जिस सजीवता से मंच पर उतारा, उसने दर्शकों को मोह लिया। उनके चेहरे के हाव-भाव, स्वर की उतार-चढ़ाव भरी अभिव्यक्ति, और संवाद अदायगी ने दर्शकों को क्षण भर को भी मंच से विमुख नहीं होने दिया।प्रकाश संयोजन और रिकार्डेड संगीत के ज़रिए आशीष कुलकर्णी ने नाटक के भाव-प्रवाह को गहराई प्रदान की, वहीं सदानंद वासुदेव मुल्लिक का मंच पर दिया गया लाइव संगीत नाटक के भावनात्मक क्षणों को और अधिक सजीव बनाता रहा। मंच व्यवस्था में खुद “सुरभि” के सचिव अजय कुमार भारती और अशोक ठाकुर की साधारण मंच सज्जा सौंदर्य स्पष्ट रूप से झलकती रही। “रश्मिरथी” की यह प्रस्तुति न केवल एक साहित्यिक कृति का नाट्य मंचन था, बल्कि यह आत्मबल, सामाजिक पीड़ा और नायकत्व की गूढ़ परतों को उद्घाटित करने वाला एक गंभीर प्रयास भी था। डॉ आनंद कुमार पांडेय के संयोजन में आयोजित इस नाट्य महोत्सव की यह प्रस्तुति कई मायनों में यादगार बन गई। “रश्मिरथी” की यह छंदबद्ध नाट्य प्रस्तुति अपने अभिनय, निर्देशन, संगीत और सम्पूर्ण समर्पण के साथ जशपुर की रंगपरंपरा में एक नया उजास भर गई। यह महज एक नाटक नहीं, बल्कि कर्ण के माध्यम से मनुष्यत्व की खोज थी और उस खोज ने दर्शकों को भीतर तक झकझोर दिया। दर्शकों ने नाटक की भूरी भूरी प्रशंशा करते हुए खड़े होकर सम्मान में देर तक तालियां बजती रही।

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