सोशल मीडिया पर ‘ब्लड बैंक पाठक’ के नाम से छाए सतेंद्र पाठक
63 वर्ष की उम्र में भी लगातार निशुल्क रक्तदान
जशपुर। आमतौर पर डेयरी दुकानों में दूध, दही, पनीर और अन्य डेयरी उत्पाद ही बिकते हैं, लेकिन जशपुर जिले की पाठक डेयरी आज मानवता की नई मिसाल बन चुकी है। बस स्टैंड स्थित इस दुकान में समाजसेवी सतेंद्र कुमार पाठक, जिन्हें लोग सोशल मीडिया पर ‘ब्लड बैंक पाठक’ के नाम से जानते हैं, जरूरतमंदों तक तुरंत रक्त पहुँचाकर लगातार जानें बचा रहे हैं।
63 वर्ष की उम्र में जहाँ लोग आराम को प्राथमिकता देते हैं, वहीं पाठक आज भी निःशुल्क रक्तदान करते हैं। सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर वे घंटों के भीतर रक्त दाताओं की व्यवस्था कर देते हैं, जिसकी हर कोई सराहना कर रहा है।
सोशल मीडिया पर एक्टिव

पाठक छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार सहित कई राज्यों से जुड़े व्हाट्सऐप व सोशल मीडिया ग्रुपों में सक्रिय रहते हैं। जरूरत पड़ते ही वे मरीज का नाम, पता और ब्लड ग्रुप साझा कर मदद जुटाते हैं।
अक्सर उनका एक मैसेज ही किसी गंभीर मरीज के लिए संजीवनी साबित होता है।
बस स्टैंड के पास स्थित उनकी डेयरी दुकान वर्षों से उनका “सेवा केंद्र” है। दुकान चलाते हुए वे निरंतर रक्तदान अभियान भी संचालित करते हैं। उनके प्रयासों से अब तक हजारों लोगों को जीवनदान मिल चुका है।
रक्तदान महादान – 2000 से जारी सेवा
सतेंद्र पाठक बताते हैं कि एक समय कई मरीजों को समय पर रक्त न मिलने से परेशान देखते-देखते उनके भीतर सेवा का जज़्बा जागा। वे तब छात्र संगठन से जुड़े थे और निजी व्यवसाय की भी शुरुआत नहीं की थी।
वर्ष 2000 में कल्याण आश्रम संस्था से जुड़े और ‘गहिरा गुरु रक्त संघ’ के माध्यम से रक्तदान सेवा में सक्रिय हो गए। तब से लेकर आज तक वे सैकड़ों बार रक्तदान कर चुके हैं और अनगिनत मरीजों को समय पर रक्त उपलब्ध कराया है।
वे बताते हैं“ब्लड दिलाना आसान नहीं होता, लेकिन कोशिश यही रहती है कि जरूरतमंद तक हर हाल में मदद पहुँचे। रक्तदान करें और दूसरों को भी प्रेरित करें एक यूनिट रक्त किसी की जिंदगी बचा सकता है।
“खून के बदले खून”
वे निजी ब्लड ग्रुप बनाना उचित नहीं मानते। उनका कहना है कि इससे लोग डर जाते हैं, इसलिए वे केवल सार्वजनिक सोशल मीडिया ग्रुपों में पोस्ट करते हैं, ताकि अधिकतम लोग जुड़ें और मदद कर सकें।
पाठक बताते हैं“जब किसी एक व्यक्ति के रक्तदान से किसी की जान बचती है, तो वह भी प्रेरित होकर आगे रक्तदान करता है। यही ‘खून के बदले खून’ की सच्ची भावना है। ब्लड बैंक में भी यही व्यवस्था है आप एक यूनिट दें, बदले में किसी की जान बच सकती है।
वे छत्तीसगढ़ ही नहीं, झारखंड के तपकारा, रांची, रायगढ़ आदि स्थानों में भी कई बार स्वयं रक्तदान कर चुके हैं। वह मुस्कुराते हुए कहते हैं “माँ डांटती थीं कि लोग मुझे बार-बार बुलाकर थका देते हैं,पर जब कोई जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा हो, तो पीछे हटना कैसे संभव है?” सतेंद्र पाठक लोगों से अपील करते हैं “हर व्यक्ति साल में कम से कम तीन बार रक्तदान करे। इससे शरीर को नुकसान नहीं होता, बल्कि किसी की अनमोल जिंदगी बचाई जा सकती है। यह सबसे बड़ा पुण्य है।

