राजिम कुंभ कल्प मेला-2024 आस्था, अध्यात्म और संस्कृति का त्रिवेणी संगम

रायपुर (News27)22.02.2024 । राजधानी रायपुर से लगभग चालीस किलोमीटर स्थित धार्मिक नगरी राजिम में प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक 15 दिनों के मेले का शुभारंभ 24 फरवरी से आरंभ होने वाला है, जो आठ मार्च तक चलेगा। मेले में प्रदेश सहित देश के श्रद्धालुगण एवं घुमक्कड़ों की टोली, साधु-संतों का जमावड़ा लगा रहता है। धर्म और आस्था के बीच लोग मेले का आनंद लेने भी यहां उमड़ते हैं। राजिम में प्राचीन मंदिर स्थित है, जैसे संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव का मंदिर नदी के बीचों-बीच स्थित है, जो देखने में मनमोहक और आस्था का प्रतीक है। इसके अलावा यहां का राजीवलोचन मंदिर भी अत्यंत प्राचीन माना गया है। आठवीं शताब्दी से स्थित राजीव लोचन मंदिर की स्थापना पूर्वकाल में एक तेलीन महिला द्वारा किया गया था, जिनका नाम राजीम था। राजीम भगवान विष्णु जी की अन्यन्य भक्तिन थी, जिनके आस्था से प्रभावित भगवान विष्णु यहीं विराजमान हो गए ऐसी मान्यता है। राजिम की ख्याति और ऐतिहासिकता को देखते हुए राज्य शासन द्वारा वर्ष 2001 से राजीव लोचन महोत्सव के रूप में वर्ष 2005 से राजिम कुंभ कल्प मेला के रूप में मनाया जा रहा है। यह आयोजन छत्तीसगढ़ शासन धर्मस्व एवं पर्यटन विभाग एवं स्थानीय आयोजन समिति के तत्वाधान में होता है। मेला की शुरुआत कल्पवाश से होती है। पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते हैं। पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते है तथा धुनी रमाते है। 101 किलोमीटर की यात्रा का समापन होता है और माघ पूर्णिमा से मेला का आगाज होता है। जिसमें हर वर्ष हजारों की संख्या में नागा साधू सहित विभिन्न् संप्रदायों के संतगण आते है और विशेष स्नान पर्व व संत समागम में भाग लेते है।

राजिम कुंभ कल्प मेला का नाम क्यूं पड़ा

राजिम मेला को कुंभ कल्प मेला के रूप में प्रसिद्धी मिली है। राजिम मेले को कुंभ के रूप में निरूपित किये जाने को लेकर कई राजनीतिदल आपत्ति लगाते रहे हैं। इसके लिए वे भारतवर्ष के सर्वघोषित कुंभ को ही पौराणिक रूप से सिद्ध कुंभ मानकर राजिम को कुंभ कहे जाने पर सवाल खड़े करते रहे हैं। दरअसल कुंभ का अर्थ घड़ा से है। चूंकि राजिम मेला तीन नदियों के संगम स्थल पर आयोजित होता है और जहां एकत्रीकरण के भाव हो जैसे मिट‌‌टी का घड़ा किसी भी वस्तु के एकत्रीकरण करने का कार्य करता है, भले ही उसमें जल एकत्र करें या कोई अन्य वस्तु, यानी एकत्रीकरण का भाव जहां हो वह कुंभ (घड़ा) नामकरण से चिन्हित किया जा सकता है। इसी तरह राजिम में तीन नदियों क्रमश:महानदी, पैरी नदी तथा सोंढूर नदी का संगम या कहें एकत्रीकरण होता है तो ऐसे स्थल धार्मिक रूप से कुंभ के रूप में प्रचलित हो जाते हैं। हालंकि राजिम पूर्ण कुंभ की श्रेणी में नहीं आते इसलिए राजिम कुंभ कल्प मेला के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान प्रशासन द्वारा विविध सांस्कृतिक व धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।

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